खुद की खुद से बातें
खुद को खुद की बातें बताकर देखो।
आईना निहारकर खुद को टटोलकर तो देखो।
संसार के रोशन - बेरोशन दीपक तो खूब निहारे ,
अब ज़रा अंतर्मन की ज्योत को जलाकर तो देखो।
दुनिया की भीड़ में तो टहल लिए खूब,
जनाब ज़रा खुद के साथ भी तो घूमने जाकर देखो।
आंको कि इसकी, उसकी, तेरी, मेरी करते करते क्या क्या खो दिया तुमने,
अब जो खो दिया है उसको पाकर तो देखो।
बेशक छीना है! और होगा रस्म-ए-दुनिया ने तुमसे,
अब ज़रा अपना अंतस भी तो संवार कर देखो।
लगा ली खूब दौड़ भेद सी चाल में तुमने,
अब ज़रा दौड़कर खुद में वापस आ कर तो देखो।
देखो कि क्या खोया क्या पाया तुमने,
जो खोया है वो पाकर और जो पाया है उसे संवारकर तो देखो।
खुद को खुद कि बातें बताकर तो देखो।
-इतिषा दुबे
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